Friday, August 20, 2021

प्रकाश संश्लेषण क्या होता है। प्रकाश संश्लेषण का महत्व, परिभाषा, व प्रयोग और महत्वपूर्ण सूत्रों का संगठन।

 प्रकाश संश्लेषण का महत्व, परिभाषा, और महत्वपूर्ण सूत्रों का संकलन व प्रकाश संश्लेषण क्या होता है ? फुल हिंदी में जानकारी।


प्रिये मित्रों आज हम आपके लिए बहुत ही रोचक जानकारी ले कर आये हैं जिसे पढ़कर आपको एक अच्छी जानकारी तो मिलेगी ही बल्कि आपको परीक्षा में भी इससे सफलता मिलेगी । आज के इस टॉपिक में हम आपको प्रकाश संश्लेषण के बारे में सभी तथ्य बताएंगे।प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से परीक्षा में भी इसकी परिभाषा पूछी जाती है तो आप बिलकुल भी घबराएं नहीं क्योंकि हम प्रकाश संश्लेषण से जुड़े सभी टॉपिक बताएंगे। पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे आर्टिकल को लास्ट तक पड़ें , चलिये शुरू करते हैं।

प्रकाश संश्लेषण क्या होता है व इसकी परिभाषा ?

वह प्रक्रिया जिसके द्वारा पौधे जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके सुर्य के प्रकाश तथा पणृहरित की उपस्थिति में अपना भोजन बनाते हैं उसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।

पत्त्तियों की संरचना कैसे होती है ?

अधिकांश पौधों की पत्तियाँ समतल और हरे रंग की होती हैं। ये अत्यधिक पतली किन्तु कोशिकाओं की अनेक परतों से मिलकर बनी होती हैं।

पत्ती की अधिकांश कोशिकाओं में पणृरहित नहीं होता है, इनमें वायु के लिए स्थान होता है।

यह स्थान छोटे छिद्रों से जुड़े रहते हैं,जिन्हें रंध्र कहते हैं।ये बाहर की ओर खुलते हैं और गैसों का आदान - प्रदान करते हैं।

जल की अधिकता को भी रंध्रो द्वारा समाप्त किया जाता है। सूर्य के प्रकाश में किसी पत्ती को ध्यानपूर्वक देखिए आप शिराओ के एक जाल को देखेंगे।

ये शिरायें एक मद्य् शिरा से जुड़ी रहती है जिसे मध्य रीढ़ कहा जाता है।

जो शाखा तथा तने की नलियों से डंठल द्वारा जुड़ी रहती है जल तथा खनिज लवण इन शिराओं द्वारा पत्त्तियों तक पहुंचाते हैं।

तैयार भोजन को तने की नलियां शिराओं द्वारा ले जाती हैं तथा पौधे के विभिन्न भागों तक पहुंचाती हैं शिराओं में दो नलियां होती हैं, एक भीतरी बहाव के लिए और दूसरी बाहरी बहाव के लिए।

पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया

हरे पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, सभी सजीव जंतु भोजन तथा ऑक्सीजन     के लिए पौधों पर निर्भर रहते हैं। अतः पौधे हमारे पर्यावरण का अत्यधिक महत्वपूर्ण अंग है ।

पत्तियां पौधों के भोजन का कारखाना या रसोईघर कहलाती हैं।

पणृरहित नामक हरे पदार्थ की उपस्थिति के कारण पत्त्तियों का रंग हरा होता है, ये पदार्थ भोजन के निर्माण के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं।।

जड़ तथा पत्तियां भी भोजन के निर्माण में सहायता करती हैं जड़ के सूक्ष्म रेशों मिट्टी से जल और खनिज लवण अवशोषित करते हैं।

तना मिट्टी के ऊपर वृद्धि करता है ये शाखाओं, पत्तियाँ, फूलों और फलों को सहायता देता है।

ये पत्तियां द्वारा निर्मित भोजन को पौधे के सभी भागों तक ले जाता है।

पत्त्तियों के क्या क्या कार्य होते हैं ?



पत्तियाँ प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में कार्य करती हैं ये कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण और ऑक्सीजन निष्कासित करके पौधे की भोजन बनाने में सहायता करती हैं।

पत्तियाँ भोजन के प्रजनन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन को ग्रहण करती हैं।

पौधे वाष्पोत्सर्जन की क्रिया के समय रंध्रो द्वारा अतिरिक्त जल को बाहर निकालते हैं।

भोजन पत्त्तियों, तना, जड़ों, फलों तथा बीजों में सरंक्षित होता है।

पौधे अपना भोजन कैसे बनाते हैं ?


सुर्य का प्रकाश पत्त्तियों को भोजन बनाने के लिए ऊर्जा देता है।

पत्त्तियों में उपस्थित पणृरहित सुर्य से सौर ऊर्जा प्राप्त करता है।

पत्तियाँ रंध्रो द्वारा वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करती हैं।

अवशोषित जल जड़ों तथा तनों द्वारा पत्त्तियों तक तथा नलियों द्वारा पत्त्तियों की सभी कोशिकाओं तक पहुंचाया जाता है।

प्रकाश संश्लेषण के समय, सूर्य की ऊर्जा कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के साथ क्रिया करके ग्लूकोज ( पौधे का भोजन ) बनाती हैं तथा वायु में ऑक्सीजन मुक्त करती हैं।

ये प्रक्रिया इस प्रकार होती है -:

6CO2 + 12H2O + प्रकाश + पणृरहित - C6H12O6 + 6H2O + पणृरहित कार्बन डाइऑक्साइड + प्रकाश + पणृरहित - ग्लूगोज + ऑक्सीजन + जल + पणृरहित 

ग्लूगोज को नलियां तथा तने द्वारा पौधे के सभी हिस्सों तक ले जाया जाता है :- जैसे - पत्तीयों , तने , जड़ें, फल और बीजों तथा भोजन के रूप में एकत्रित किया जाता है।

पालक , अन्नानास , अनार , अखरोट , गेहूँ , गन्ना , आलू , गाजर , मूली , तथा फूलगोभी पौधे के भागों के कुछ उदाहरण हैं।

अहरित पौधों के बारे में जानकारी।

नागफनी

हम जानते हैं कि हरि पत्त्तियों वाले पौधे भोजन बनाते हैं हम यह भी जानते हैं कि भोजन बनाने के लिए पत्त्तियों मे पणृरहित की उपस्थिति आवश्यक है।

नागफनी, मशरूम, मोल्ड तथा क्रोटन की पत्तियां हरि नहीं होती । नागफनी में, पत्तियाँ काँटो के रूप में होती हैं । भोजन इसके मोटे हरे तने में बनाया जाता है।नागफनी के पौधे को बहुत ही कम पानी की आवश्यकता होती है। कम पानी वाले स्थानों में पैदा होने के कारण इनकी पत्त्तियों का रूप काँटों में बदल जाता है। 

क्रोटन

कुछ पौधों जैसे क्रोटन में पणृरहित होता है किंतु इनका रंग गहरा लाल दिखाई देता है क्योंकि इनमें लाल पदार्थ उपस्थित होता है।

मशरूम

क्या आपने मशरूमों को नम लकडी पर उगते हुए देखा है यदि नही तो हम आपको बताते हैं, ये हरे रंग के नहीं होते हैं। इनमें भोजन बनाने के लिए पणृरहित नहीं होता है। ये मरे तथा सड़े हुए पौधों तथा जन्तुओं से पौष्टिक तत्वों को अवशेषित कर लेता है।

प्रकाश संश्लेषण के महत्वपूर्ण सूत्र।

प्रकाश संश्लेषण के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र ये हैं-:

जल - H2O

ऑक्सीजन - O2

ग्लूगोज - C6H12O6

कार्बन डाइऑक्साइड - CO2

प्रकाश संश्लेषण के कुछ मुख्य बिंदु ( Some Important Points )

सभी सजीव जंतुओं की वृद्धि के लिए भोजन आवश्यक है।

पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं।

भोजन बनाने के लिए इन्हें जल, पणृहरित, सुर्य का प्रकाश और कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है।

पणृहरित की उपस्थिति के कारण पत्त्तियों का रंग हरा होता है, ये पौधे के भोजन का कारखाना कहलाती हैं।

भोजन पत्त्तियों, तना, जड़ों, फलों और बीजों में सरंक्षित रहता है।

प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में ग्लूगोज का निर्माण होता है और ऑक्सीजन को वातावरण में छोड़ा जाता है।

प्रकाश संश्लेषण में सूर्य की क्या भूमिका है ? 

सुर्य के कारण ही सभी प्रकार के पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है जो सूर्य के बिना असंभव है और इससे ही पेड़ पौधों का भोजन बन पाता है तथा पेड़ पौधे इस भोजन के कारण वृद्धि करते हैं।

सूर्य का प्रकाश ही पेड़ पौधों का भोजन बनाने में सहायता करता है।

जब सूर्य का प्रकाश पेड़ पौधों के ऊपर पड़ता है तो पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया अपनाते हैं और अपना भोजन कर पाते हैं।

कीटाहारी पौधे किसे कहते हैं ? 



ये पौधे छोटे कीड़े मकोड़े को पकड़कर खाते हैं। भोजन बनाने के लिए इनकी पत्तीयाँ हरि होती हैं। अतः ये कम नाइट्रोजन वाली मिट्टी में वृद्धि करते हैं। कीड़े मकोड़े को खाने से ये उनसे अपने हिस्से के खनिज लवण प्राप्त करते हैं।

वीनस फलयट्रिप, घटपर्णी, ड्रोसेरा आदि कीटाहारी पौधे में , पत्ती कलश के आकार की होती है। इसके अंदर कुछ द्रव्य होता है। जो इसमें गिरे हुए कीड़े मकोड़े को मार देता है। कीड़े मकोड़े को कलश के अंदर पचाया जाता है तथा खनिजों को पौधे द्वारा प्रयोग किया जाता है।

वीनस फलयट्रिप की पत्ती के प्रत्येक आधे हिस्से में लंबे कांटे होते हैं काँटो को छूने पर पत्ति के किनारे के दोंनो आधे हिस्से बंद हो जाते हैं तथा कीडे को अंदर बन्द कर लिया जाता है। जिसे बाद में पौधे द्वारा पचा लिया जाता है।

प्रकाश संश्लेषण की अनुकूलता 

सभी सजीव जंतु अपने वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया करते हैं तथा ये प्राकृतिक रूप से उनके आचरण, आकृति, विग्यान, सारीरिक रचना तथा जीवन पद्दत्ति को प्रभावित करता है।

पौधे विभिन्न वातावरणों में रहते हैं और वृद्धि करते हैं कुछ पौधे भूमि पर, कुछ जल में तथा कुछ मरुस्थलों आदि में वृद्धि करते हैं।

यह सभी स्थान जहां प्राणी रहते हैं उनके आवास कहलाते हैं। 

भिन्न भिन्न स्थानों पर जलवायु की स्थिति भिन्न भिन्न होती है। इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए पौधे स्वयं में उचित परिवर्तन करते रहते हैं यह परिवर्तन अनुकूलन कहलाते हैं। 

यह अनुकूलन इनकी विपरीत परिस्थितियों में सुविधा पूर्वक तथा सुरक्षित रूप से रहने में सहायता करते हैं।

प्रकाश संश्लेषण से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रशन।

पणृहरित का रंग कैसा होता है ?

उत्तर :- पणृहरित का रंग हरा होता है।

नागफनी में क्या नहीं होता है ?

उत्तर :- नागफनी में पत्तियां नही होती हैं क्योंकि इनकी पत्तीयाँ काँटों में बदल जाती हैं।

आयोडीन के सम्पर्क में आने पर आलू का टुकड़ा कैसा हो जाता है ? 

उत्तर :- आयोडीन के सम्पर्क में आने के बाद आलू का टुकड़ा हर हो जाता है।

रंध्रो द्वारा पानी की कमी को क्या कहते हैं ?

 उत्तर :- रंध्रो द्वारा पानी की कमी होने के कारण को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।

भोजन बनाने के लिए पत्तियों में उपस्थित हरा पदार्थ क्या कहलाता है ?

उत्तर :- पत्तियों में उपस्थित भोजन बनाने के लिए हरा पदार्थ पणृहरित कहलाता है।

पत्तियों में हरा पदार्थ क्या कहलाता है ?

उत्तर :- पत्तियों में हरे रंग का पदार्थ पणृहरित कहलाता है।

प्रकाश संश्लेषण में मरुस्थलीय पौधे ।

इन पौधों को सूखी भूमि के पौधे कहते हैं इन पौधों में तना छोटा , लकड़दार , सूखा तथा कठोर होता है पत्तियों का आकार छोटा होता है।

मरुस्थलों में मिट्टी चट्टानी या रेतीली होती है तथा अधिक जल को धारण नहीं कर पाती । अतः अपनी पत्तियों द्वारा जल नहीं सोखते इस कारण पत्त्तियों की वृद्धि नहीं होती है तथा काँटो का आकार ग्रहण कर लेती हैं।

ऐसे पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया तने द्वारा होती है जड़ें लंबी तथा अच्छी प्रकार से फैली हुई होती है तथा भूमि के अंदर तक होती हैं।

प्रकाश संश्लेषण में जलीय पौधे ।

पौधे जो जल पर या जल के अंदर रहते हैं जलीय पौधे कहलाते हैं। इनमें से कुछ पूर्णतः जल के अंदर उगते हैं और कुछ जल की सतह पर तैरते हैं ये पृथ्वी पर पाय जाने वाले पहले पौधे थे।

ये तीन प्रकार के होते हैं:- 

1. जल - मग्न पौधे

2. तैरते पौधे

3. स्थिर पौधे 

1. जल - मग्न पौधे :- कुछ पौधे पूर्णतः जल के अंदर  वृद्धि करते हैं । इन्हें  जल मग्न  पौधे कहते हैं। 

ये नीचे की ओर मिटटी में स्थिर होते हैं ये जल के तेज बहाव को सहन कर सकते हैं। इनमें रंध्र नहीं होते, ये अपने शरीर की सतह से सांस लेते हैं । इनकी पत्तीयाँ छोटी तथा सँकरी होती हैं। ये पत्तीयाँ पानी के बहाव की दिशा में घूम जाती है तथा टूटती नही है।

उदहारण :- फीते वाली घास , तालाबी खरपतवार आदि

2. तैरते पौधे :- ये पौधे  पानी की सतह पर मुक्त  रूप तैरते हैं। इनका तना छोटा  तथा जड़ें  उचित रूप से विकसित नहींं होती हैं। इनकी पत्तियों पर एक मोटी  मोम जैसी परत होती है।

जिससे पानी सतह को गीली न कर सके तथा रंध्र बंद न हो सके ।

उदाहरण :- डकवीड ,  पिसतीया आदि 


3. स्थिर पौधे :- कुुुछ पौधों की जड़ेें पानी की तली से जुुडी रहती हैं। इन  पौधों का  तना लंबा तथा खोकला होता है जो चौड़ी पत्तियों तथा  फूलों की  तैरने में  साहायता करता है । तना लचीला  होता है  तथा रंध्र पत्तियों की  ऊपरी सतह पर पाए जााते है। 

उदहारण :- वाटर लिली, कमल आदि। 


मिट्टी के अपरदन में पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते हुए।

मिट्टी प्राकृतिक कारणों से आसानी से अपरदित होती रहती है। यह वर्षा या तेज हवा के कारण स्थान परिवर्तित करती रहती है। प्राकृतिक कारणों से भूमि की ऊपरी परत का बह जाना स्थान परिवर्तित होना मिट्टी अपरदन कहलाता है।

अपरदन के कारण भूमि की ऊपरी उपजाऊ परत टूटकर बह जाती है, इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है और पेड़ पौधों को नमी तथा आवश्यक खनिज लवण नहीं मिल पाते हैं जिस कारण उनकी वृद्धि एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

जब मिट्टी को जल एवं वायु के द्वारा अपरदित होने से बचाने की क्रिया की जाती है तो उसे मिट्टी का सरंक्षण कहते हैं। 

पेड़ पौधों, घास, झाड़ियों, आदि मिट्टी को अपने में जकड़े रखती हैं। इनकी जड़ें बहुत मजबूत होते हैं जिस कारण जकड़ी मिट्टी आसानी से बह जाती है और उड़ नहीं पाती है।

नदियों के किनारे बाँध एवं तट बनाकर नदियों की दिशा परिवर्तनों को रोका जा सकता है। इससे खेतों की उपजाऊ मिट्टी को बाड़ों एवं नदियों के गतिशील जल में बहने से रोका जा सकता है।

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